मंगलवार, 29 सितंबर 2009

और कितने मुखोटे बदलते रहेंगे .....

मल्टीपल पेर्सोनालिटी क्या है ये तो आप जानते होंगे इसके बारे में कभी पढ़ा या नाम तो सुना ही होगा आपने, किताबो में ,किसी डॉक्टर से या कही नही तो फिल्मो में तो जरुर सुना और देखा होगा ..... पर मैं यहाँ आपसे इस बीमारी के किसी केस पर बहस करने के लिए नही लिख रही हु बल्कि आपको बताने की कोशिश कर रही हु की आज हम सब इस बीमारी के शिकार चुके है और इससे छुटकारा पाना बहुत ही मुश्किल है क्युकि अब चाह कर भी हम इस बीमारी से नही बच सकते ..... अपने आसपास हमने वो माहोल बना दिया है के अगर आपने इस बीमारी से बचने की कोशिश भी की तो आपके अपने आपको बीमार समझ कर हॉस्पिटल ले जाएँगे .........शायद मेरी बात समझ नही आ रही आपको अच्छा तो ये बताइये एक दिन में आप कितनी पर्सनालिटी जीते है .... घर पर आप केसे रहते है ,ऑफिस में क्या करते है, कॉलेज में दोस्तों के सामने क्या हो आप और अकेले में अपनी गर्ल फ्रेंड या बॉय फ्रेंड के सामने आपकी कौन सी पेर्सोनालिटी होती है इन सब सवालो के जवाब तलाशेंगे तो आप ख़ुद को ही नही पहचान सकोगे .....आख़िर आप कौन हो आप और आपकी असली पहचान क्या है ..... अपनी पहचान बनाने के चक्कर में कही हम अपनी ही पहचान तो नही भूल रहे और न जाने कितने मुखोटे रोज पहनते और उतारते है वो भी अपनों के सामने .......अब ये नाटक हमारी मज़बूरी ये हो गई चाह कर भी हम अपने असली रूप में नही आ सकते क्युकी डर है कही सामने वाले को ये पता नही चले की आप ऐसे भी है ..........जो इन्सान सबको हसांता रहता है हसंता रहता उसको तो कभी कोई गम हो ही नही सकता और अपनी इसी इमेज को बचाने के लिए वो चाह कर भी रो नही सकता केवल और केवल हसता रहता है ......... जो हम दोस्तों के साथ है वो घर पर क्यों नही रह सकते या जो घर पर है वो दोस्तों के बीच क्यों नही .....इन सवालो का जवाब बहुत खोजने पर भी नही मिला तो आखिरी हेल्प लाइन ऑडियंस पोल का इस्तेमाल कर लिया तो आप ही जवाब दो बीमारी की वजह और इलाज का .......